Brah.ma
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बाबा का दरबार सुहाना लगता है
हरि अपनैं आंगन कछु गावत
मैया! मैं नहिं माखन खायो
मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो
मैया कबहुं बढ़ैगी चोटी
दृढ इन चरण कैरो भरोसो, दृढ इन चरणन कैरो
तिहारो दरस मोहे भावे श्री यमुना जी
कनक रति मनि पालनौ, गढ्यो काम सुतहार
कनक रति मनि पालनौ, गढ्यो काम सुतहार
पलना स्याम झुलावत जननी
पालनैं गोपाल झुलावैं
हालरौ हलरावै माता
कन्हैया हालरू रे
नाम महिमा ऐसी जु जानो
भक्त को सुगम श्री यमुने अगम ओरें
फल फलित होय फलरूप जाने
श्री यमुने पति दास के चिन्ह न्यारे
साची कहो मनमोहन मोसों तो खेलों तुम संग होरी
व्रज में हरि होरी मचाई
वृंदावन एक पलक जो रहिये
श्री वल्लभ भले बुरे दोउ तेरे
छगन मगन प्यारे लाल कीजिये कलेवा
दोउ भैया मांगत मैया पें देरी मैया दधि माखन रोटी
बोले माई गोवर्धन पर मुरवा
देखो माई ये बडभागी मोर
हों तो एक नई बात सुन आई
पहरे पवित्रा बैठे हिंडोरे
पवित्रा पहरे को दिन आयो
पवित्रा श्री विट्ठलेश पहरावे
पवित्रा पहरत हे अनगिनती
व्रजमंडल आनंद भयो प्रगटे श्री मोहन लाल
राधा प्यारी कह्यो सखिन सों सांझी धरोरी माई
अरी तुम कोन हो री बन में फूलवा बीनन हारी
देखो री हरि भोजन खात
ग्वालिन
मलार मठा खींच को लोंदा
राधे जू आज बन्यो है वसंत
चिरजीयो होरी को रसिया
ऐसो पूत देवकी जायो
जागिये ब्रजराज कुंवर
औरन सों खेले धमार
प्रात समय नवकुंज महल
रे मन कृष्ण नाम कहि लीजै
जौं आजु हरिहिं न अस्त्र गहाऊँ
अब मैं जानी देह बुढ़ानी
मन की मन ही माँझ रही
हरि हैं राजनीति पढि आए
हमारे हरि हारिल की लकरी
ऊधौ,तुम हो अति बड़भागी
गिरि जनि गिरै स्याम के कर तैं
आजु मैं गाई चरावन जैहों
सोभित कर नवनीत लिए
ऐसी प्रीति की बलि जाऊं
तजौ मन, हरि बिमुखनि कौ संग
आजु हौं एक-एक करि टरिहौं
मन धन-धाम धरे
दियौ अभय पद ठाऊँ
आनि सँजोग परै
अजहूँ चेति अचेत
रे मन मूरख, जनम गँवायौ
जनम अकारथ खोइसि
अब मैं नाच्यौ बहुत गुपाल
रतन-सौं जनम गँवायौ
अब मेरी राखौ लाज, मुरारी
हमारे प्रभु, औगुन चित न धरौ
बदन मनोहर गात
कहां लौं बरनौं सुंदरताई
माधव कत तोर करब बड़ाई
सबसे ऊँची प्रेम सगाई
उपमा हरि तनु देखि लजानी
जागिए ब्रजराज कुंवर
हम भगतनि के भगत हमारे
मेटि सकै नहिं कोइ
बृथा सु जन्म गंवैहैं
सकल सुख के कारन
राखी बांधत जसोदा मैया
व्रजमंडल आनंद भयो प्रगटे श्री मोहन लाल
मोहन केसे हो तुम दानी
रानी तेरो चिरजीयो गोपाल
हरि हरि हरि सुमिरन करौ
वा पटपीत की फहरानि
मो परतिग्या रहै कि जाउ
जो पै हरिहिं न शस्त्र गहाऊं
हरि, तुम क्यों न हमारैं आये
ऐसैं मोहिं और कौन पहिंचानै
नाथ, अनाथन की सुधि लीजै।
नाथ, अनाथन की सुधि लीजै
अब या तनुहिं राखि कहा कीजै
तबतें बहुरि न कोऊ आयौ
ऊधो, मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं
कहां लौं कहिए ब्रज की बात
कहियौ जसुमति की आसीस
कहियौ जसुमति की आसीस
निरगुन कौन देश कौ बासी
ऊधो, मन माने की बात
ऊधो, हम लायक सिख दीजै
अंखियां हरि-दरसन की भूखी
उधो, मन न भए दस बीस
फिर फिर कहा सिखावत बात
ऊधो, होहु इहां तैं न्यारे